कम में भी है दम

कम में भी है दम

किसी गांव के अखाड़े में दंगल चल रहा था। आसपास के इलाकों से भी नामी पहलवान आए हुए थे। भारी भीड़ जमा थी। सब लोग अपने-अपने पसंदीदा पहलवान का उत्साह बढ़ा रहे थे। तरह-तरह के दांव-पेच आजमाता हुआ

नामचीन पहलवान भीमा अपने प्रतिद्वंद्वी सल्लू पहलवान से हार गया, तो वह दुखी होकर अपने गुरु गजराज सिंह के पास जा पहुंचा। वह अपनी हार का विश्लेषण करने लगा। वह बोला- गुरु जी, ऐसा कैसे हो गया? आपने तो मुझे लगभग सभी दांव सिखा रखे हैं, लेकिन जिस दांव से सल्लू ने आज मुझे पटखनी दी है, वह तो मुझे आता ही नहीं था। सल्लू तो बहुत कमजोर पहलवान है। उसे वह दांव कैसे आता था? गुरु जी कुछ देर तक चुप रहे फिर उन्होंने कहा- देखो भीमा, यहीं तुमसे भारी चूक हो गई है।

सामने वाले को कभी अपने से कम नहीं समझना चाहिए। तुमने सल्लू को हल्के में लिया जिससे वह तुम पर हावी हो गया और एक बहुत मामूली दांव से उसने तुम्हें मात दे दी। तुमने ज्यों ही उसे कम आंका तुम्हारी चुस्ती कम हो गई, इसी का उसे लाभ मिल गया। जिस तरह रात का अंधियारा छोटे से दीपक से मिट जाता है, वहां सूरज का कोई काम नहीं है। पैर में कांटा चुभा हो तो वह भी छोटे से कांटे या सूई से ही निकाला जाता है, वह तलवार से तो निकलता नहीं। ऐसे ही तुमने बड़े-बड़े दांवों पर भरोसा किया और छोटे दांवों को भुला दिया। नतीजा तुम्हारे सामने है। इसलिए छोटे के महत्व को कभी कम नहीं आंकना चाहिए।



HTML clipboard 

No comments:

Post a Comment