लोकतंत्र की हार! समझ नहीं आता कि यहां देश किस दिशा में बढ़ता जा रहा है। दिल्ली से लेकर कोलकाता, बेंगलूरू, देहरादून और रांची तक हर तरफ ब्लैकमेलिंग की राजनीति के खुले खेल ने सभी मर्यादाओं को ध्वस्त कर दिया है। कोई भी सरकार हो, कोई भी राजनीतिक दल या राजनेता, ऎसा लगता है कि किसी को जनता की चिंता रह ही नहीं गई है।
सब अपनी-अपनी चिंता में डूबे हैं। जिनकी सरकार है, वह सरकार बचाने की चिंता में और जो विपक्ष में बैठे हैं, वे सरकार में आने की चिंता में हैं। देश एक सप्ताह से रेल मंत्री को हटाने, नया रेल मंत्री बनाने का खेल देख रहा है, तो कर्नाटक का सियासी नाटक भी देख रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संसद सत्र के दौरान जिस तरह प्रधानमंत्री को रेल मंत्री बदलने के लिए बाध्य किया, वह प्रधानमंत्री की नहीं, देश की देश के लोकतंत्र की हार मानी जाएगी।
ममता बनर्जी कौन होती हैं, देश का रेल मंत्री तय करने वाली? फिर भी उनकी पसंद का रेल मंत्री बना, तो साफ है कि केन्द्र सरकार लाचार होकर समर्थन या राजनीतिक गठबंधन की कीमत चुका रही है। यह भारतीय राजनीति के लिए बहुत दुखद स्थिति है।
कर्नाटक में 70 विधायकों के समर्थन का दावा कर वाई.एस. येडि्डयुरप्पा भाजपा आलाकमान को मुख्यमंत्रीे पद देने के लिए धमका रहे हैं। आलाकमान भी है कि न तो उनकी मांग मानने को तैयार दिख रहा है और न उनकी मांग ठुकराने का साहस जुटा पा रहा है। कारण यहां भी वही सत्ता खोने का डर है।
राजनीतिक दल पारदर्शिता के लम्बे-चौड़े वादे तो करते हैं, लेकिन सच में पारदर्शी बन नहीं पाते हैं। भाजपा आलाकमान को देश को बताना चाहिए कि वह येडि्डयुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने को तैयार है या नहीं। पर्दे के पीछे की लुका-छिपी क्यों? उत्तराखंड में भी एक सप्ताह से ऎसे ही नाटक का मंचन हो रहा है। राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई, लेकिन एक-तिहाई विधायक शपथ लेने को तैयार नहीं। मंगलवार को दस मंत्रियों के शपथ लेने के बावजूद सरकार का भविष्य अनिश्चित दिख रहा है।
दिल्ली हो, बेंगलूरू या देहरादून, ऎसा हो इसलिए रहा है कि हमारे राजनेताओं के दांत खाने के और होते हैं, दिखाने के और। येन-केन-प्रकारेण सत्ता बनी रहे, राजनीतिक दलों का यही मूल मंत्र रह गया है, जिसकी कीमत देश की जनता चुका रही है। सरकार न दिल्ली में चलती नजर आ रही है और न बेंगलूरू-देहरादून में। हमारी राजनीतिक पार्टियों को अपनी हालत में सुधार करना चाहिए। स्वार्थ की राजनीति छोड़कर प्रदेश और देश के हित में विधि के अनुसार विचार करना चाहिए। HTML clipboard |
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