जीवन अपने पूर्ण रूप में सिर्फ प्रेम में ही प्रकट होता है

जीवन अपने पूर्ण रूप में सिर्फ प्रेम में ही प्रकट होता है



HTML clipboard समाज का संतुलन दो बातों पर निर्भर करता है- पहला, व्यक्ति और समाज के बीच संबंध और दूसरा, स्त्री और पुरुष के बीच संबंध। यह संबंध का स्वभाव है, जो जीवन को संतुलन देता है। संतुलन से शांति स्थापित होती है, और असंतुलन से अशांति और अस्थिरता का खतरा होता है।

यह संतुलन कैसे बरकरार रहे, इसके लिए अल्लाह ताला ने अपने नबियों और रसूलों के जरिए लोगों के पास अपनी हिदायतें भेजीं। अंत में अल्लाह ने हजरत मुहम्मद सल्ल. को अपना मार्गदर्शन पूरा करने के लिए चुना और उन पर पवित्र ग्रंथ कुरआन अवतरित किया। हजरत मुहम्मद सल्ल. ने लोगों को दो मुख्य बातें बताईं। एक, इंसान के रूप में व्यक्ति के क्या अधिकार और कर्त्तव्य हैं। और दूसरा, सांसारिक जीवन के बाद भी एक जीवन है जहां हमें यहां के किए गए कर्मों का फल मिलेगा।

अक्सर सुनने में आता है कि वह बड़ा है, वह छोटा है। यह बंटवारा काम या पेशे के आधार पर किया जाता है। पेशे को इंसान के बड़ा और छोटा होने का मानदंड समझा जाता है, जो गलत है। किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के आधार पर काम छोटा मिल सकता है, परंतु अगर उसी काम को वह समर्पण और निष्ठा से पूरा करता है, तो वह काम उसके कर्म में तब्दील हो जाता है। यही कर्म किसी व्यक्ति की जिम्मेदारी और कर्तव्यनिष्ठा का सबूत है। और जिम्मेदारी और कर्तव्यनिष्ठा की यही भावना किसी व्यक्ति को बड़ा या छोटा बनाती है।

अगर समाज का हर व्यक्ति निष्ठा और ईमानदारी से अपना काम करेगा, तो निश्चय ही एक स्वस्थ और न्याय परक समाज की रचना होगी। हजरत मुहम्मद सल्ल. ने मात्र ये उपदेश दूसरों को ही नहीं दिए, बल्कि इन पर खुद ही अमल करके भी दिखाया। एक पैगंबर और शासक होते हुए भी अपना निजी काम वे अपने हाथों से किया करते थे।

कुरान में आया है , ' लोगों ! हमने तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें जातियों और गोत्रों में फैला दिया , ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो। वास्तव में अल्लाह के निकट तुम में सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है जो तुम में सबसे अधिक ईश भय रखता है। ' हजरत मुहम्मद ( सल्ल .) फरमाते हैं : सारे लोग खुदा के कुटुंब हैं। इसलिए उसके निकट सबसे उत्तम व्यक्ति वह है , जो उसके कुटुंब के साथ अच्छा व्यवहार करे। '

न्यूटन का तीसरा नियम है कि प्रत्येक क्रिया के बराबर और समान विपरीत प्रतिक्रिया होती है। अगर हम दूसरों से प्रेम करेंगे तो हमें प्रेम मिलेगा। दया की प्रतिक्रिया के रूप में दया। इसीलिए चाहिए कि हम सब की भलाई और कल्याण पर ध्यान दें।

जीवन अपने पूर्ण रूप में सिर्फ प्रेम में ही प्रकट होता है। हमें परस्पर जोड़ने और जोड़े रखने वाली वस्तु प्रेम ही है। आदमी उसी के साथ बना रहेगा , जिससे उसे प्रेम होगा। नैतिकता और प्रेम का मतलब यह है कि हमारी बातचीत और व्यवहार में उस प्रेम का रस पाया जाए। हदीस संग्रह में है कि हजरत मोहम्मद ( सल्ल .) ने फरमाया है , वह व्यक्ति हम में से नहीं , जो बड़ों का आदर करे , छोटों से स्नेह करे , सब की भलाई का प्रचार करे और बुराई को रोके।

परस्पर प्रेम का अर्थ यह है कि हम एक दूसरे के शुभचिंतक हों। पड़ोसी चाहे किसी संप्रदाय के हों , हम उनका ख्याल रखें। सब की भलाई और कल्याण पर ध्यान दें। किसी से नफरत करें। सेवा से जी ना चुराएं। अब्दुल्ला बिन उमर की रिवायत है कि दया करने वालों पर रहमान ( अल्लाह ) रहम फरमाएगा। जमीन वालों पर रहम करो तो आसमान वाला तुम पर रहम करेगा। रहम का शब्द रहमान से निकला है। जो यह शब्द अपने आचरण से जोड़ेगा , अल्लाह उसे जोड़ेगा और जो उसे काटेगा अल्लाह उसे काटेगा ।'

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