जीवनशैली ठीक रखें

जीवनशैली ठीक रखें
एक या दो मंजिली इमारत और उसमें रहने वाले दो परिवार। दोनों को ही एक दूसरे से कोई लेना-देना नहीं था। सहकारिता और परस्परता की दोनों में ही कोई भावना नहीं थी। ऊपर की मंजिल पर रहने वाले ने एक दिन शिकायत की— "तुम सिगड़ी जलाते हो, उसका सारा धुआं ऊपर मेरे फ्लैट तक पहुंचता है। कोई उपाय करो।" नीचे की मंजिल पर रहने वाले ने लापरवाही से कहा— "धुआं रोकने का मेरे पास कोई उपाय नहीं है। खाना बनाते समय धुआं तो होगा ही और धुएं का स्वभाव है ऊपर उठना। इसमें मैं क्या कर सकता हूं।"

यह सरासर ढिठाई भरा उत्तर था। ऊपर की मंजिल वाले परिवार के लिए "जैसे को तैसे" वाला फार्मूला अपनाना जरूरी हो गया। उसके बाथरूम और रसोई की पाइप नीचे की ओर जाती थी। उसने पाइप में छेद कर दिया। अब उस पाइप से गुजरने वाला सारा गंदा पानी एक साथ नीचे वाली मंजिल के दरवाजे पर गिरने लगा। अब चिल्लाने की बारी नीचे वाली मंजिल के व्यक्ति की थी। उसने आवाज लगाई— "आदमी हो तो आदमी की तरह रहना सीखो। तुम्हारे घर का सारा गंदा पानी मेरे दरवाजे पर गिर रहा है, उसकी निकासी का इंतजाम करो।" उसने कहा— "तुम्हारी तरह मेरी भी मजबूरी है भाई। जैसे धुएं का स्वभाव ऊपर उठना, वैसे ही पानी का स्वभाव नीचे की ओर बहना है। क्या किया जाए?"


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