प्राइनेट स्कूलों द्वारा दाखिल याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इन याचिकाओं में कहा गया था कि शिक्षा का अधिकार कानून निजी शैक्षणिक संस्थानों को अनुच्छेद 19 (1) जी के अंतर्गत दिए गए अधिकारों का उल्लंघन करता है , जिसमें निजी प्रबंधकों को सरकार के दखल के बिना अपने संस्थान चलाने की स्वायतत्ता प्रदान की गई है। मामले में लंबे समय तक चली जिरह के दौरान केंद्र ने कानून के पक्ष में दलीलें देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। केंद्र ने जोर देकर कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में योग्यता और प्रतिभा को सामाजिक और आर्थिक विभिन्नता से अलग रखा जाना चाहिए।
यह कानून संविधान में अनुच्छेद 21 ( ए ) के प्रावधान के जरिए तैयार किया गया था , जो कहता है कि सरकार छह से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करे। याचिकाओं में दलील दी गई थी कि शिक्षा का अधिकार कानून असंवैधानिक है और बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार कानून की धारा -3 गैर - सहायता प्राप्त निजी और अल्पसंख्यक संस्थानों पर एक अनिवार्य बाध्यता लगाती है कि वह दाखिला लेने के लिए आने वाले आसपास के हर बच्चे को बिना किसी चयन प्रक्रिया के दाखिला दे।
No comments:
Post a Comment