दिखावा छोड़ें वैवाहिक समारोहों में भव्यता बढ़ती ही जा रही है। वास्तव में यह इस बात पर निर्भर करती है कि विवाह को आप संस्कार के रूप में ले रहे हैं या फिर इवेंट के रूप में। यह दिन कौन-सा बार-बार आने वाला है, यह सोचकर युवा भी इस खर्च को कम करने के बारे में नहीं सोचते बल्कि क्षमता से भी अधिक खर्च किया जाता है। पूंजीवाद-बाजारवाद के गठबंधन ने विवाह बंधन को भी प्रभावित किया है। हमारी मानसिकता भी इतनी बाजारू हो गई है कि दूल्हा तक बिकते हैं। -अनंत निजामपुरकर, इंदौर बजट की "लू" महंगाई, मूल्यवृद्धि और टैक्स की गर्मी से आम आदमी को "लू" लग गई है। ग्रीष्मकालीन लू का तो इलाज है परंतु बजट की आम आदमी बजट की लू से नहीं बच सकता। आज का राष्ट्रीय परिदृश्य ऎसा है कि आम आदमी न तो मनमोहन से प्रसन्न है, न राघवजीे और न ही प्रणव से, ममता से भी नहींं। रामदेव और अन्ना फेक्टर भी काम नहीं कर रहा। ऎसे में कौन सुने आम जनता का दर्द। नेताओं के वेतन-भत्ते चुटकी में बढ़ जाते हैं, आम आदमी घडियाल बचाए तो भी सरकार नहीं सुनती। -किशोर सनस, देवास चढ़ावे का इस्तेमाल तिरूपति में भक्तों ने रामनवमी को छह करोड़ रूपए चढ़ाए। इसी तरह पिछली एक जनवरी को 4 करोड़ रूपए से ज्यादा का चढ़ावा आया था। साईं बाबा के शिरडी देवस्थान पर भी करोड़ों में चढ़ावा आता है। एक तरफ देवस्थानों का यह वैभव और दूसरी तरफ भूखमरी, कुपोषण और बेराजगारी। तमाम भक्त मंडलों और मंदिरों की प्रबंध समितियों को बैठकर यह पैसा इस तरह खर्च करना चाहिए जिससे देश में रोजगार के अवसर बढ़ें और विभिन्न समस्याओं का अंत हो सके। मंत्री-विधायकों के वेतन-भत्तों में भारी वृद्धि, अब लगा कि सचमुच हमारा प्रदेश बढ़ चला स्वर्णिम दिशा की ओर। |
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