वाह रे बचपन!


वाह रे बचपन!

ब च्चों के लिए यह जमाना ही अलार्म है। कॉलेजों के बच्चे कितने आराम से जागते हैं। मगर छोटे बच्चों के लिए मम्मी सबसे बड़ा अलार्म होती है। बिना घंटी के ही वे सुबह जल्दी आ जाती हैं। फिर बच्चे को जबानी अलार्म देती है। बच्चा नहीं उठता तो उनके हाथ के दो चांटे ही बच्चे को उल्टा-पुल्टा कर देते हैं। मम्मी सुबह-सुबह ही हेडमिस्ट्रेस बन जाती हैं। वे चाहती हैं कि बच्चा मशीन की तरह चालू हो जाए, बिना कहे फ्रेश हो जाए, बाथरूम में नहा ले।

मां किचन से ही ऑर्डर देती हंै, "नहा लिए बेटा, जल्दी से स्कूल ड्रेस पहनो।" फिर पूछेंगी - "बेग तैयार है।" बच्चे ने कहा "तैयार कर रहा हूं मॉम।" मॉम के नथुने फूल जाते हैं। कहती हैं- "हमने आपसे पहले ही कहा था कि रात को ही बेग जमा लिया करो और सुबह का टेंशन मत लिया करो।" मेरा मन कहता है- "मॉम क्या ऎसी कोई मशीन नहीं है कि रात को ही फ्रेश हो जाएं, नहा लें, स्कूल ड्रेस की टाई लगा लें, बूट पहन लें और सीधे स्कूल बस में नाश्ता और पानी की बोतल के साथ पांच किलो का बेग लेकर सवार हो जाएं।" अभी मॉम कितनी डांट पिलाएंगी, यह सोचते-सोचते ही चुप हो गया।

मां बच्चे को थर्मामीटर या बेरोमीटर की तरह लगती है। अगर पहली रेंक आई तो उनका टेम्प्रेचर 98.4 बना रहता है। जरा-सा नीचे हुआ नहीं कि पारा 102 के पार चला जाता है। अगर बात आगे बढ़ गई तो पापा भी थर्मामीटर का काम करने लगते हैं। मां कहती हैं- "हमने आपसे पहले ही कहा था, आप ध्यान नहीं देते। बच्चे को बचाते रहते हैं।

देखिए न, दूसरे बच्चों को फर्स्ट रेंक मिली है और हमारा बच्चा थर्ड रेंक लाया है। "मैं गुमसुम हो जाता हूं। क्या करूं? कभी फूलों की क्यारी में पानी पिलाने की इच्छा हो जाती है, कभी क्रिकेट खेलने की, कभी पानी पताशे खाने की। मम्मा हर बार कहती हैं कि आपने पर्यावरण का होमवर्क कर लिया? पर कैसे कहूं कि "क्यारी में पानी दे रहा था।" मां पर्यावरण का पाठ पढ़ाती है, पर गमलों में पानी देने का टाइम नहीं है।

मैं सोच ही रहा था कि मां की आवाज आई - "जल्दी करो ट्यूशन का टाइम हो गया है। लौट कर खाना और फिर साइंस की ट्यूशन के लिए चले जाना।"

अच्छा है कि मैं लड़की नहीं हूं वर्ना भरतनाट्यम और कत्थक की एक और कोचिंग हो जाती। पता नहीं मैं बड़ा कब होऊंगा? उनींदी आंखों के साथ सुबह-सुबह जागने और स्कूल भागने की मशीन-सी मजबूरी कब छूटेगी? कब ट्यूशन भागने की परेड खत्म होगी? कब आंखें झपकाते हुए होमवर्क और प्रोजेक्ट खत्म होंगे? उम्मीद है दिन फिरेंगे। मॉम-पापा और स्कूल की मिस गमलों में पानी देने की बात से पर्यावरण पढ़ाएंगी न कि किताब, टेस्ट और क्लास-रेंक से। कभी उनके मन में खयाल आएगा कि सचिन पढ़ाई में उतने छक्के नहीं लगा पाया पर क्रिकेट की जिन्दगी में जमकर छक्के लगाए।

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