अपने बारे में भी सोचें आज लोगों की स्थिति यह है कि बिस्तर से उठते ही व्यापार-धंधे की बात दिमाग पर हावी हो जाती है। कभी-कभी तो सुप्तावस्था में भी आदमी व्यापार की ही बात सोचता है।
कपड़े का एक व्यापारी अपने धंधे में दिन-रात व्यस्त रहता था। एक दिन रात को उसकी पत्नी के कानों में कपड़ा फाड़ने की आवाज आई। पत्नी ने समझा कि कुछ गड़बड़ है। वह उठकर बैठ गई। कमरे की मंद रोशनी में उसने ध्यान से देखा तो पाया बिस्तर पर सोया उसका पति अपनी धोती फाड़ रहा है। उसे बहुत आश्चर्य हुआ। सोचा पति की मानसिक स्थिति शायद गड़बड़ा गई है।
उसने आवाज देकर कहा-"आप यह क्या कर रहे हैं?" पत्नी की आवाज पति के अवचेतन मन तक गई और वहीं से उसने चिढ़कर जवाब दिया-"घर पर तो एक क्षण के लिए भी शांति से रहने नहीं देती, कम से कम दुकान पर तो रहने दिया करो। देखती नहीं, ग्राहक को लटे का थान फाड़कर दे रहा हूं।"
पत्नी को अब समझ में आया कि सेठजी सुप्तावस्था में बोल रहे हैं। उसने कहा-"आंखे खोलो, होश में आओ और देखो कि थान से कपड़ा फाड़ रहे हो या अपनी धोती फाड़ रहे हो?" व्यापारी ने जब यह सुना तो हड़बड़ा कर उठकर बैठ गया। कहने का अर्थ यह कि कितने ही लोग ऎसे हैं जो उठते-बैठते, सोते-जागते सिर्फ व्यापार और धन के बारे में ही चिंतन करते हैं। बहुत ही कम लोग ऎसे होते हैं जो धन के अतिरिक्त आत्मा, परमात्मा और स्वास्थ्य के बारे में भी चिंतन करते हैं?
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