सेवा के बदले

सेवा के बदले

HTML clipboard  दिल्ली के द्वारका इलाके में डॉक्टर दंपति के घर से मुक्त कराई गई एक नाबालिग बच्ची कामामला घरेलू सहायक के रूप में जीवन निर्वाह करने वालों की मुश्किलों की ओर ध्यान दिलाता है। यह न केवल शहरों-महानगरों में अपना जाल फैलाई प्लेसमेंट एजेंसियों की आपराधिक कारगुजारियों के निर्बाध चलते रहने का उदाहरण है, बल्कि इससे पता चलता है कि अपनी सुविधा या आराम के लिए रखे गए किसी बच्चे के साथ कथित रूप से पढ़ा-लिखा परिवार भी कितना संवेदनहीन और बेरहम हो सकता है। दंपति ने पहले तो गैरकानूनी रूप से लगभग तेरह साल की बच्ची को घर के कामकाज के लिए रखा, फिर उसे ठीक से खाना नहीं दिया और लगातार उस पर जुल्म ढाते रहे। यही नहीं, घूमने के लिए विदेश जाते वक्त उन्होंने उस बच्ची को घर में बंद कर दिया। यह दंपति इससे पहले ऐसा ही व्यवहार एक अन्य बच्ची के साथ कर चुका था। सवाल है कि ऐसे मानसिक ढांचे में जीने वालों को किस आधार पर सभ्य नागरिक की तरह देखा जाए? यह तल्ख सच्चाई शायद दबी रह जाती, अगर घर में कैद करके रखी गई उस बच्ची को संयोग से पड़ोसी परिवार को अपना दुख बताने का मौका नहीं मिला होता और उसने पुलिस को यह जानकारी न दी होती। इस पूरे मामले में देर से सही, लेकिन पुलिस ने जैसी सक्रियता दिखाई, उसकी तारीफ की जानी चाहिए। लेकिन विडंबना यह है कि उसका ज्यादातर समय समस्याओं की अनदेखी में गुजरता है और यही वजह है कि कई लोगों को कानून की परवाह करना जरूरी नहीं लगता।
दिल्ली जैसे तमाम बड़े शहरों में प्लेसमेंट एजेंसी का धंधा करने वाले दलालों के जरिए झारखंड, छत्तीसगढ़ या बिहार जैसे राज्यों के गरीब लोगों को बहला-फुसला कर उनके नाबालिग बच्चे-बच्चियों को लाते हैं और अपने कमीशन का हिस्सा तय कर उन्हें घरेलू कामकाज के लिए घरों में भेज देते हैं। उसके बाद उनके साथ वहां कैसा बर्ताव होता है, समय से तनख्वाह मिलती है या नहीं, इससे उन्हें शायद ही कोई मतलब होता है। बहुत सारे मामलों में छोटी बच्चियों को वेश्यालयों में बेच दिया जाता है जहां वे यौन-शोषण की बर्बर चक्की में पिसने को मजबूर हो जाती हैं। कई अध्ययनों से यह तथ्य सामने आ चुका है कि घरेलू कामकाज में लगा दिए गए बच्चों पर काम का बोझ लाद दिया जाता है; जलील करना, गालियां देना, शारीरिक अत्याचार ढाना या लड़कियों का यौन-शोषण आम बात है। कानून को धता बता कर नाबालिग बच्चों को   काम पर रखना और उनके साथ बेरहमी दरअसल ऐसी मानसिकता का उदाहरण है, जिसमें खुद को सिर्फ इसलिए श्रेष्ठ समझा जाता है कि मन में किसी की रोजी-रोटी चलाने का भ्रम बैठा रहता है। जबकि कई स्थितियां ऐसी होती हैं, जिनमें कुछ परिवारों के लिए घरेलू नौकर रखना मजबूरी होती है। सही है कि घरेलू नौकरों के अपराध में शामिल होने के मामले भी सामने आते रहे हैं। लेकिन ज्यादातर जगहों पर देखा गया कि घरेलू नौकरों के साथ अमानवीय बर्ताव ऐसी घटनाओं की जड़ में था। ताजा मामला न सिर्फ नौकरी देने के नाम पर बाल मजदूरी कराने वालों पर नजर रखने और उन पर शिकंजा कसने की जरूरत को रेखांकित करता है, बल्कि अपनी जरूरत के लिए घरेलू नौकर रखने वालों को अपनी जिम्मेदारी, व्यवहार और संवेदनाओं के बारे में भी सोचने पर मजबूर करता है।

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