काश ! वे भी कभी भटकें


काश ! वे भी कभी भटकें


भटके को राह बताना वाकई पुण्य का काम है। आध्यात्मिक होकर ऎसा करे या कोई आपसे किसी का पता पूछता आ जाए तो भी पुण्य आपको जरूर मिलेगा। पूछने वाले की दुआएं मिलना तो निश्चित है। यदि किसी को लगता है कि उसने वाकई बहुत पाप कर लिए हैं तो इंदौर उसके लिए तीर्थ के समान है। अब कोई आश्चर्य करे कि जो शहर जीवनदायिनी नदी की दुर्दशा पर नहीं कराहा उसे तीर्थ क्यों कहा जा रहा है। अरे भाई, ऎसा नहीं है हम तो बुजुर्गोü की कही बात को आगे बढ़ा रहे हैं।

यदि भटके को राह बताना वाकई पुण्य का काम है तो इसे करने की सबसे ज्यादा गुंजाइश इंदौर में है। इंदौर में ऎसे छुटभैये नेताओं की एक बड़ी फौज तैयार हो गई है जिनके पास करने को राजनीति के अलावा कुछ नहीं बचा, पर कमाई अच्छी खासी है। जनता की कभी परवाह रही नहीं पर ख्याति के लिए मरे जा रहे हैं। अब ऎसे में ख्याति कैसे मिले? किसी ने सलाह दी कि भैया हर जगह बैनर पोस्टर लगवा दो। भैया का जन्मदिन हो...उस्ताद कुछ बन जाएं या दादा तीर्थ करके लौटें तो बस बधाई के संदेश से शहर पटवा देना।

अब जनता इतनी मूर्ख तो है नहीं कि पोस्टर में छपे चेहरे का रूतबा न माने। पर इस गफलत में भैयाजी लोग एक सद्कर्म भी कर जाते हैं। लोगों को पता बताने के लिए जो साइन बोर्ड शहर भर में लगाए गए हैं। जिनके लगने पर उनके ही अपने सीनियर भैयाजी ने वाह-वाही लूटी थी...उन पर भी अपने खूबसूरत थोबड़े चिपका देते हैं। अब भटके को राह कैसे मिले? हां आप सही समझे। तो भैया आप रात को एक नक्शा लेकर शहर की सड़क पर निकलो। कोई भटकता मिल जाए तो उसे पता बताओ और पुण्य कमाओ। कितना आसान है.. है न? नहीं...नहीं उतना आसान नहीं जितना सरकारी जमीन पर कब्जा करना। अरे नहीं, आप नहीं करना। जमीन पर काबिज होना है तो पहले सरपरस्त ढंूढ़ो फिर सब जायज है।

अभी तो भटके को राह दिखाओ और पुण्य कमाओ। थोड़ा संभलकर निकलना क्योंकि यहां नशा करके नृत्य करने वालों की भी कमी नहीं है। हमारे पड़ोसी प्यारे इंदौरी को... हां.. हां.. प्यारे इंदौरी...ठेठ मालवी...संस्कृति की दुहाई देने वाले...अपनेपन और भाईचारा जैसे शब्दों के सही जानकार... प्रेम... प्यार... सौहाद्रü की मिसाल... पता नहीं कैसे वक्त मिलता है इन्हें। हां तो वापस लौटें, प्यारेजी को एयरपोर्ट पहुंचना था, अलसुबह की फ्लाइट थी।

बेचारे शार्ट कट के चक्कर में गलत राह पकड़ गए और भटक गए। ठंड के दिन थे सो लोग भी राह में न मिले। साइन बोर्ड पर थोबड़े ही थोबड़े। अब ये तो प्यारेजी थे...कोई भैयाजी तो थे नहीं कि फ्लाइट इंतजार करे... सो छूट गई। बेचारे बेहद दु:खी हुए, जरूरी काम था दिल्ली में। व्यथित होकर बोले- भगवान करे किसी दिन इन नेताओं का कोई अपना किसी शहर में भटक जाए... तो इन्हें पता चले। मैंने अपने जीवन के संपूर्ण अनुभव (जितना भी है) को उन पर निचोड़ते हुए कहा कि- वे भटक चुके हैं... पूरी पीढ़ी भटक चुकी है... उन्हें समझने में देर लगेगी बस!

व्यक्ति का स्वभाव


एक बार आदमी का संकोच टूट जाता है तो फिर वह लगातार निर्लज्ज बनता जाता है।

किसी राजा के सामने चार अपराधी पेश किए गए। पहले अपराधी को राजा ने मृत्युदंड की सजा सुनाई, क्योंकि वह आदतन अपराधी प्रवृत्ति का था। दूसरे को आजीवन कारावास, तीसरे को पांच वष्ाü की सश्रम कैद। फिर चौथा अपराधी राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने उससे कहा— "यह तुमने क्या किया?" और इतना कहकर उसे छोड़ दिया।

इस निर्णय पर राजा के प्रधान आरक्षक ने राजा से कहा— "यह क्या महाराज? चारों का एक ही जुर्म, चारों पर एक ही धारा, लेकिन चारों को अलग-अलग तरह के दंड। आपका यह न्याय समझ में नहीं आया।"

राजा ने कहा— "बाद में समझ जाओगे, प्रतीक्षा करो।"

दूसरे दिन राजा को सूचना मिली, मृत्युदंड मिलने वाला अपराधी फरार हो गया। जिसे आजीवन कारावास का दंड मिला था, वह प्रसन्न मन से जेल में मस्ती कर रहा है। जिसे पांच वष्ाü की कैद मिली थी, उस पर भी सजा का कोई विशेष्ा प्रभाव नहीं है, लेकिन जिसे राजा ने "यह तुमने क्या किया?" कहकर छोड़ दिया था, उसने फांसी लगाकर अपने जीवन का अंत कर लिया। यह है व्यक्ति का स्वभाव। जिसमें लज्जा थी, उसके लिए राजा का मार्मिक कथन ही सबसे बड़ी सजा थी। अनुताप और पश्चात्ताप की आग में झुलसाने में स्वयं को असमर्थ पाकर उसने अपना जीवन ही समाप्त कर लिया।

दो घूंट पानी पिया तो काट डाला हाथ

 किसान के मटके से दो घूंट पानी पीने पर एक दलित युवक का हाथ काटने का मामला सामने आया है। यह घटना हिसार जिले में पुलिस स्टेशन उकलाना के तहत दौलतपुर गांव की है। पुलिस ने आरोपी युवक के खिलाफ केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया है। राजेश नाम का पीडि़त युवक पड़ोसी जिले फतेहाबाद के गांव सनियाणा गांव का रहने वाला है। उसका इलाज प्राइवेट हॉस्पिटल में चल रहा है। डीसी ने बताया कि प्रशासन ने इलाज के लिए राजेश के परिजनों को तुरंत 50 हजार की रकम दी है। उनके मुताबिक इलाज का सारा खर्च सरकार वहन करेगी।

दरांत लेकर हमले का आरोप

पुलिस का कहना है कि राजेश गांव के ही ठेकेदार के पास लकडि़यां काटने का काम करता है। बुधवार सुबह करीब 9 बजे वह दौलतपुर गांव में काम करने गया था। सुबह 10 बजे काम करते हुए वह पास के ही एक खेत में रखे मटके से पानी पीने चला गया। इसी दौरान दौलतपुर गांव निवासी राजेंद्र उर्फ पप्पू उसके पास आया। उसने राजेश से कहा किसतै पूछ कै पाणी पीया ? कै जात सै ? तेरी हिमत क्यूं कर होई मटके के हाथ लगाण की ? इस पर राजेश ने आरोपी युवक से माफी मांग ली। आरोप है कि पप्पू ने राजेश से उसकी जाति पूछी। राजेश का आरोप है कि जाति बताने के बाद पप्पू ने साइकल से दरांत निकाली और वार कर दिया। इस हमले के बाद उसके हाथ से खून निकलने लगा। वह दौड़कर कुछ दूर ट्रॉली के पास खड़े अपने साथियों के पास गया। उन लोगों ने जाकेट हटाकर देखा तो हाथ लटक चुका था। वहां से खून बह रहा था। हाथ की हड्डी अलग दिखाई दे रही थी।

प्राइवेट हॉस्पिटल में चल रहा है इलाज

राजेश को शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। चार घंटे तक डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन किया। हड्डियों में स्टील प्लेट लगा कर आधे कटे हाथ को जोड़ दिया गया है। डॉक्टरों का कहना है कि हाथ जुड़ने में तीन महीने का समय लगेगा। डॉक्टरों के मुताबिक तीन महीने बाद यह हाथ वजन उठाने के लायक बचेगा , यह कहना अभी मुश्किल है।

अब कैसे चलेगी घर की गाड़ी

राजेश अपने हाथ को लेकर चिंतित है। इन्हीं हाथों की ताकत से उसे 200 रुपये मजदूरी मिलती है। राजेश की गर्भवती पत्नी अनु भी परेशान है। आखिरकार परिवार पालने की जिमेदारी राजेश के हाथों पर है। पत्नी पेट से है। छोटे भाई की मानसिक हालत भी ठीक नहीं है। दो भाइयों में राजेश बड़ा है। दोनों भाई किसी तरह मजदूरी करके परिवार चला रहे थे। राजेश का कहना है कि घटना के बाद दौलतपुर का सरपंच और पप्पू के घरवाले अस्पताल आए थे। अस्पताल पहुंचने के बाद वे समझौते का दबाव बना रहे थे। राजेश के मुताबिक उन्होंने समझौते से इनकार कर दिया है और वे हमलावर के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं।

 इन्द्रियां बड़ी सम्पत्ति
जिस व्यक्ति के पास पांच इन्द्रियां हैं, मन है, उसे दुखी नहीं होना चाहिए। दसों इन्द्रियां जिसके पास हों, वह कभी दुखी हो ही नहीं सकता। संसार की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसे मिली हुई है। दूसरी सम्पत्तियों का भरोसा तो बाद में होता है। इन्द्रिय की और मन की सम्पत्ति मूल सम्पत्ति है।

एक आदमी का बहुत बड़ा परिवार था। दर्जनों पुत्र, पोते और बहुएं थीं। अचानक उसकी आंखें चली गई। वह दृष्टिहीन हो गया। लोगों ने उसे सलाह दी कि किसी नेत्र विशेष्ाज्ञ से आंख का परीक्षण करा लो, ऑपरेशन करा लो, आंखें ठीक हो जाएंगी। उस व्यक्ति ने जवाब दिया, "क्या जरूरत है। छह जवान बेटे और कई पौत्रों के होते हुए मुझे आंखों की क्या जरूरत है। उसने आंख का परीक्षण नहीं कराया।

भाग्य की बात, कुछ दिन बाद पैरालिसिस के कारण उसके दोनों पैर भी अशक्त हो गए। लोगों ने कहा, "अभी शुरूआती दौर है। दवा से आराम से इलाज करा सकते हैं और ठीक हो सकते हैं। उसने जवाब दिया, "इतना बड़ा परिवार होते हुए मुझे क्या चिन्ता? ये लोग ही मेरे हाथ-पैर हैं।"एक दिन अचानक घर में आग लग गई। घर के लगभग सभी सदस्य अपना जरूरी सामान लेकर बाहर चले गए। घर का जो मुखिया था, वह अंधा और अपाहिज था। वह घर में ही जलकर मर गया। परिवार के आंख और पैर उसके काम नहीं आए। इसलिए जरूरी है कि सुख के लिए सभी इन्द्रियां परिपूर्ण हों।

राजकुमारी के लिए किसका त्याग सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा
साधना क्या है ? यह ' साध् ' शब्द से बना है। जब मनुष्य किसी काम में सफल होने के लिए लगातार प्रयास करता है और उसे उस कार्य में सफलता मिलती है , तो कहते हैं कि उसकी साधना सफल हुई। इसी तरह सेवा क्या है ? जब कोई दूसरों की सेवा नि : स्वार्थ भाव से करता है और इसके बदले कुछ भी पाने की इच्छा नहीं रखता , तो उसे सेवा कहते हैं। इसी तरह दूसरे की भलाई के उद्देश्य से जब कोई अपना कुछ छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है , तो उसे त्याग कहते हैं। लेकिन साधना और सेवा की तरह इस त्याग की भी अनेक श्रेणियां होती हैं। इसे समझने के लिए एक कहानी सुनो।

एक राजकुमारी अपने प्रिय से मिलने जा रही थी। रास्ते में उसे एक कुष्ठ रोगी मिला। रोगी ने कहा , ओ राजकुमारी , तुम जरा पानी ला कर मेरे ये घाव साफ कर दो। मैं उठ नहीं सकता। इनमें बहुत पीड़ा हो रही है।

सुन कर पहले तो राजकुमारी चौंकी। लेकिन फिर कहा , मेरा होने वाला पति कहीं मेरा इंतजार कर रहा है। पहले उससे मिल लूं , फिर वापस आ कर तुम्हारी सेवा कर दूंगी। रोगी ' अच्छा ' कह कर चुप हो गया।

राजकुमारी अपने राजकुमार से मिलने पहुंची। वह बेसब्री से उसके आने का इंतजार कर रहा था। दोनों मिले तो राजकुमार उसके साथ थोड़ा वक्त बिताना चाहता था। लेकिन राजकुमारी ने उसे कुष्ठ रोगी की बात बताई और कहा कि वह भी उसका इंतजार कर रहा होगा। राजकुमार बोला , ठीक है , तुमने उसे वचन दिया है और वचन निभाना सभी का कर्तव्य है। तुम अवश्य जाओ।

राजकुमारी वापस चल पड़ी। कुछ दूर चलने पर संयोग से रास्ते में उसे एक डाकू मिला। राजकुमारी को गहनों से लदा देख कर वह चिल्लाकर बोला , रुक जाओ। मुझे गहने उतारकर देती जाओ। राजकुमारी ने उसे भी रोगी की बात बताई और कहा , अभी मुझे न रोको। वहां से लौटते हुए मैं तुम्हें गहने दे दूंगी। डाकू राजकुमारी की बात मान गया।

वह फिर आगे बढ़ी। लेकिन कुछ ही दूर चलने पर उसे एक बाघ मिला। उसने कहा , मुझे भूख लगी है , तुम्हें खाऊंगा। राजकुमारी ने उसे भी पूरी बात बताई और विनती की , मुझे अपना एक कर्तव्य पूरा करने जाना है। कुछ देर बाद इसी रास्ते से लौटकर आऊंगी , तब मुझे खा जाना। बाघ ने भी राजकुमारी की विनती मान ली।

इतनी सारी बाधाओं को पार करने के बाद राजकुमारी कुष्ठ रोगी के पास पहुंच पाई। उसे अपने सामने देखकर रोगी चौंक गया। बोला , तुम मनुष्य नहीं , देवी हो। भला महलों के सुख पाने वाली कोई राजकुमारी किसी कुष्ठ रोगी की सेवा करने इतनी परेशानी उठा कर आएगी। तुम्हारी इस करुणा से ही मेरी पीड़ा खत्म हो गई। बहुत सारा आशीर्वाद दे कर उसने कहा , अब तुम जाओ।

राजकुमारी वापस चली। रास्ते में वह बाघ के पास पहुंची और बोली , मैं आ गई। अब मिटाओ अपनी भूख। बाघ भी राजकुमारी को सामने देख चौंक गया। बोला , भला कोई अपना वचन निभाने किसी हिंसक जानवर के पास इस प्रकार आ सकता है ? नहीं , मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा। तुम जरूर कोई देवी हो। बाघ ने भी उसे आशीर्वाद दिया और वापस जाने को कहा।

अंत में राजकुमारी डाकू के पास पहुंची। डाकू ने उसे आश्चर्य से देखा , भला ऐसा भी कभी हुआ है कि एक बार जो किसी डाकू से बचकर कोई निकल जाए और दोबारा लौटकर आए। उसने भी कहा , तुम मनुष्य नहीं , देवी हो। मैं तुम्हारे गहने नहीं ले सकता। इस प्रकार राजकुमारी अपने महल में सकुशल वापस लौट आई।

मनुष्य के जीवन में त्याग , सेवा और साधना बहुत बड़ी चीजें हैं जो मनुष्य को महान बनाते हैं। लेकिन बताओ , उन चारों में किसका त्याग सबसे बड़ा था - राजकुमार का , रोगी का , बाघ का या चोर का ?

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