रेप की कोशिश करते साथी को डाकू ने गोली मारी

रेप की कोशिश करते साथी को डाकू ने गोली मारी

कुरुक्षेत्र।। लूटपाट करने के बाद घर की युवती से रेप की कोशिश करने पर डाकू ने अपने साथी डाकू को गोली मार दी। मौके पर ही उसकी मौत हो गई। कुरुक्षेत्र के यमुनानगर में शुक्रवार को यह घटना हुई।

यमुनानगर के गणेश विहार क्षेत्र में शुक्रवार तड़के 8 हथियारबंद डकैत मकान की दीवार फांदकर घर के भीतर घुस गए। ये बदमाश हाथों में पिस्तौल और चाकू लिए हुए थे। बदमाशों ने घर में मौजूद एक महिला और उसके दो बच्चों को एक कमरे के अंदर बंधक बना लिया और घर में जमकर लूटपाट की। यहां तक कि बदमाशों ने महिला के गले की सोने की चेन, कानों की बालियां आदि उतार लीं।

उसके बाद 14 साल की लड़की के कानों की बालियां उतारने से भी इन्होंने गुरेज नहीं किया। घर का कोना-कोना खंगालने के बाद जब बदमाश लूट का सामान लेकर वापस दीवार फांदने वाले थे, तभी एक लुटेरा घर में मौजूद युवती से रेप करने की कोशिश करने लगा। कुछ बदमाशों ने इसकी इस गलत हरकत में साथ दिया। लेकिन इनमें से दो लुटेरों ने उन्हें रोकते हुए कहा, 'हम धन-दौलत लूटते हैं, इज्जत नहीं।' लेकिन हवस का भूखा लुटेरा किसी की सुनने को तैयार नहीं था।

जब उसने अपनी हरकत बंद नहीं की और युवती से रेप की कोशिश जारी रखी तो उसके साथी डकैतों ने उसे गोलियों से भून डाला। इसके बाद सारे डाकू लूट का सामान लेकर फरार हो गए।

युवती ने बताया कि जब एक लुटेरा उसे पकड़ कर कमरे के अंदर ले जा रहा था तभी उसने तीन गोलियां चलने की आवाज सुनी। गोलियां डाकू के सिर में उसके साथियों ने पीछे से मारी थीं जिससे उसका दिमाग बाहर आ गया। उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

लुटेरे यूपी की बोली बोल रहे थे और वे 20-22 साल के थे। जिस समय यह हादसा हुआ उस समय घर के मुखिया शंकर शर्मा किसी काम से बाहर गए हुए थे। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस वहां पहुंची। डीएसपी जगाधरी सुरेश कौशिक ने बताया कि जांच की जा रही है। पुलिस के खोजी कुत्ते खेतों से होते हुए एक फैक्ट्री के पास जाकर रुक गए।   
गूंगी-बहरी मरीज से डॉक्टर ने किया रेप
 

कोलकाता। ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल में बलात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही है। मंगलवार को बांकुरा जिले के सरकारी अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर ने नाबालिग लड़की से रेप करने के बाद फरार हो गया। पुलिस ने डॉक्टर के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। वहीं नाबालिग को मेडिकल टेस्ट के लिए कोलकाता भेज दिया गया है। बताया जा रहा है कि नाबालिग गूंगी और बहरी है ।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक सीने में दर्द की शिकायत के चलते मंगलवार रात एक नाबालिग को बांकुरा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। नाबालिग की मां ने आरोप लगाया कि उसकी बेटी के साथ रात में जूनियर डॉक्टर ने बलात्कार किया। अस्पताल प्रशासन ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन किया है। उल्लेखनीय है कि राज्य में इससे पहले दो और बलात्कार की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। एक महिला के साथ ट्रेन में गैंग रेप किया गया। वहीं कोलकाता के प्रसिद्ध पार्क स्ट्रीट के पास रात में चलती कार महिला से बलात्कार किया गया।


आदमी के आंतरिक रूदन की चीख
प्रत्येक ऎतिहासिक कालचक्र में कुछ सरोकार और समस्याएं ऎसी होती हैं, जो पहले से अधिक गहन होने से, समकालीन बुद्धिजीवियों और चिंतकों को अधिक चिंतित और व्यथित करती हैं। ये कभी-कभी हमारे जीवन-प्रवाह को थोड़े या अधिक परिमाण में बाधित भी करती है। ये बाधाएं लेखकों, कलाकारों, दार्शनिकों और विचारकों के उद्गारों में समय-समय पर अभिव्यक्त भी होती रहती हंै।
वर्तमान युग की या बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी की ऎसी ही मननीय समस्या है- "सामाजिक बिखराव और अलगाव की।" समाज वैज्ञानिकों ने आधुनिक समाज को एक "एकाकी भीड़" के रूप में चित्रित किया है। आज के नगरों में लोग भौगोलिक दृष्टि से चाहे पास-पड़ोस में हों और साथ-साथ भी रह रहे हों, लेकिन वह "मनोवैज्ञानिक बंधन" जो मनुष्यों को परिवार, पड़ोस और राष्ट्रों में सामुदायिक रूप से जोड़ कर रखता है, दिनों दिन शिथिल और जर्जर होता जा रहा है। पूर्व- औद्योगिक समाज में सामाजिक परिस्थितियों और सांस्कृतिक धरोहर लोगों में स्थान-बोध, पहचान -बोध तथा अर्थपूर्णता का संदर्भ प्रदान करते थे परंतु यह कितना विचित्र और दु:खद परिवर्तन हुआ है कि आधुनिक समय में लोग प्राय: अपने सामाजिक संबंध और विरासत को धोखे, कदाचार और दासता के स्रोत के रूप में देखने लगे हैं।

समाज को प्राय: एक विराट "नौकरशाह-प्रौद्योगिकी मशीन" के रूप में इस तरह प्रस्तुत किया गया है जो मनुष्य की सच्ची प्रकृति के विपरीत है तथा जो मानवीय भावना और अंतरात्मा को "जीवन की अंतिम बूंद" तक निचोड़ कर उसका उपयोग अपने अशुभ, अमानवीय और अदृश्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करती है। मनुष्य की जीवनशैली और सामाजिक परिस्थितियां समय के साथ बदलना स्वाभाविक है। मनुष्य द्वारा किया जाने वाला कार्य उसकी अभिव्यक्ति की बजाय एक ऎसी बेगार बन गया है, जिसने उसे स्वयं से ही निर्वासित कर दिया है। अपना राष्ट्र भी उलझन और शर्म का उतना ही बड़ा उद्गम बन गया है, जितना कि वह गर्व का कारण था। उसी तरह, जो परिवार परंपरागत समुदायों में पहचान का एक सकारात्मक कारण था, वही आज मनोविज्ञान द्वारा पूर्वाग्रह, छल-कपट और मनस्ताप के ऎसे उत्स की तरह देखा जा रहा है, जिससे दूर रहने की हर चंद कोशिश की जा रही है। समझाया जा रहा है कि हम माता-पिता से मुक्त हुए बिना स्वस्थ और खुशहाल व्यक्तित्व के धनी नहीं हो सकते। ये तमाम धारणाएं और घटनाएं हमारे आसपास फैल रहे सामाजिक बिखराव और अलगाव के ही लक्षण हैं।

हर युग में मनुष्य की एक छाप और छवि रही है। जैसे भारत में कभी योद्धा-योगी, यूनान में हीरो (नायक) ज्ञानोदय या "एनलाइटनमेंट" काल में "प्रबुद्धता"। आज हमारे समय में मनुष्य की जो छवि है वह कलाकारों- चित्रकारों की क्यूबवादी (क्यूबिस्ट) पेंटिंग के सदृश्य खंडित, विकृत और भ्रमित है। बीसवीं सदी के साहित्य और कला में मनुष्य की जो छवि प्रस्तुत की गई है, उसमें मनुष्य अंदर से इतनी जोर से चीख रहा है कि उसके विलाप से सारा विश्व स्पंदित हो रहा है। लेकिन फिर भी न तो भगवान और न अन्य कोई उसके हताशाग्रस्त रूदन को सुनने के लिए तैयार है। इस बीच मनुष्य का रूदन और उसकी आंतरिक चीख जारी है। अनेक दबाव और तनावजन्य रोगों के अध्ययन द्वारा समाजशाçस्त्रयों ने भी आदमी के इस आंतरिक रूदन की चीख की उपस्थिति की पुष्टि की है। पहले कभी भी "स्वयं को जानना" इतना दुष्कर नहीं रहा, जितना कि आज मनुष्य के जीवन में "निरर्थक बोध" के अवतरण से हो गया है। ऎसे कई कारण हैं जिससे वर्तमान युग में मनुष्य एकाकी भीड़ के चलते सामाजिक बिखराव और अलगाव से खुद को बचा नहीं पा रहा है।

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