नई दिल्ली : सरकार ने माना है कि शहरी इलाकों में पाइपलाइन में लीकेज होने, पानी के अवैध कनेक्शन और चोरी आदि की घटनाओं से तकरीबन 50 परर्सेंट पानी की बर्बादी होती है। जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने गुरुवार को लोकसभा में कहा, कई स्टडीज से पता चलता है कि शहरी इलाकों में 30 से 50 पर्सेंट पानी की बर्बादी होती है। इसे नॉन रेवेन्यू वॉटर (एनआरडब्ल्यू) कहा जाता है। उन्होंने कहा कि 2008-09 के दौरान 28 शहरों में की गई पायलट स्टडी से पता चला कि औसत एनआरडब्ल्यू की मात्रा 39 पर्सेंट है। बंसल ने कहा कि शहरी विकास मंत्रालय ने जानकारी दी है कि पाइपलाइन में लीकेज और चोरी आदि की अन्य घटनाओं से पानी की बर्बादी होती है। 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 एक चरवाहे को कहीं से चमकीला पत्थर मिल गया। चमकीला पत्थर लेकर वह बाजार में गया। फुटपाथ पर बैठे दुकानदार ने वह पत्थर उससे आठ आने में खरीदना चाहा, परन्तु उसने उसे बेचा नहीं। आगे गया तो सब्जी बेचने वाले ने उसका मूल्य लगाया दो मूली। कपड़े की दुकान पर गया तो दुकानदार ने उसका दाम लगाया- थान भर कपड़ा। चरवाहे ने फिर भी नहीं बेचा, क्योंकि उसका मूल्य लगातार बढ़ता जा रहा था। तभी एक व्यक्ति उसके पास आया और बोला, "पत्थर बेचोगे?" "बेचूंगा, सही दाम मिला तो?" "दाम बोलो" "हजार रूपए" "दिन में सपने देखते हो चमकीला है, तो क्या हुआ।" कहकर वह व्यक्ति आगे बढ़ गया। वह जोहरी था। समझ गया कि चरवाहा पत्थर का मूल्य नहीं जानता। वह चला गया कि फिर आता हूं। उसके जाते ही एक दूसरा जोहरी आया। पत्थर को देखते ही उसकी आंखें खुल गई। दाम पूछा, तो चरवाहे ने बताया डेढ़ हजार रूपए। जोहरी ने डेढ़ हजार में हीरा खरीद लिया। अब पहले वाला जोहरी उसके पास आया और बोला, "कहां है तुम्हारा पत्थर?" चरवाहे ने कहा, वह तो बेच दिया। "कितने में?" "डेढ़ हजार रूपए में।" जोहरी बोला, "मूर्ख आदमी, वह हीरा था जो लाखों का था। तुमने कौड़ी के भाव बेच दिया। चरवाहा बोला, "मूर्ख मैं नहीं, तुम हो। वह तो मुझे भेड़ चराते हुए मुफ्त में मिला था। मैंने उसे डेढ़ हजार में बेच दिया । लेकिन तुमने उसका मूल्य जानते हुए भी घाटे का सौदा किया। मूर्ख तुम हो या मैं।" जोहरी के पास अब कोई जवाब न था। 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 देखते ही देखते कसम से आदमी कितना बदल जाता है, इसका अनुमान हमें उनसे मिलने के बाद हुआ। वे हमारे बचपन के भायले थे। भायले भी क्या, जिगर के छल्ले थे। जवानी की बात है। वे हंसते थे तो मानो हरसिंगार के फूल झर रहे हों। वे चलते थे तो मानो एक मस्त अरबी घोड़ा चल रहा हो। वो नाचते थे तो मानो सारी कायनात को अपने संग नचा रहे हों। उस जमाने में जब आदमी की उम्र इश्क-हुस्न पर शेर कहने की होती थी, तब वे कहा करते थे, "देखते ही देखते दुनिया से उठ जाऊंगा मैं; देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे।" उनके मुंह से यह शेर सुनकर हम धक से रह जाते, क्योंकि भरी जवानी में दुनिया से उठने की बात कौन करता है। और सचमुच ऎसा ही हुआ। वे दुनिया से तो नहीं उठे, लेकिन दुनियादारी से उठ गए। दुनियादारी यानी यारबाजी, मस्ती, हंसना-हंसाना और वह सब, जो दुनिया के लिए जरूरी होती है। ऎसा नहीं कि उन्होंने ब्याह नहीं किया। ऎसा भी नहीं कि उन्होंने बाल- बच्चे पैदा न किए। ऎसा नहीं कि उन्होंने घर नहीं बनाया। उन्होंने इस जहान में वे सारे काम किए, जो एक इंसान करता है, पर बावजूद वे हमें दुनिया से उठे-उठे नजर आए। दुनिया से कटने और दुनिया से उठने में अन्तर है। दुनिया से कटने वाले संन्यासी कहलाते हैं और दुनिया से उठने वाले पैगम्बर। लेकिन हम हैरत में पड़ गए कि वे दुनिया से कटने और उठने के बावजूद न संन्यासी बने और न पैगम्बर। अभी एक दिन टकरा गए। हमने पूछा, कैसे हो? उन्होंने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न किया, तुम्हें कैसा लगता हूं? हमने कहा, "ठीक ही लग रहे हैं।" वे बोले, "तुम्हें क्या पता कि मैं ठीक हूं?" हमने कहा, "हमने तो अनुमान लगाया। बेटे-बेटी का ब्याह निपटा दिया। ठीक से नौकरी कर ली। रिटायरी अच्छी कट रही है। घर में कार है। अपनी मरजी के मालिक हो। और क्या चाहिए।" वे बोले, क्या सच वही है जो दिखलाई देता है। भ्रम भी तो सच हो सकता है। मैं बड़ा दुखी हूं। इतना दुखी कोई नहीं था। उनकी बातें सुन हमने कहा, "दुनिया में थोड़ा-थोड़ा दुखी तो सभी हैं। इसीलिए तो तथागत ने उस मृत पुत्र की मां से कहा था कि जाओ उस घर से एक मुटी सरसों ले आओ, जिस घर में कोई दुखी न हो।" वे बोले, मैं तो जन्म से ही दुखी हूं। हमने कहा, यह असंभव है। क्या आपके जीवन में कभी सुख नहीं आया। वे बोले, मेरा तो जन्म ही एक दुर्घटना है। उनका दार्शनिक अंदाज में कहा गया यह वाक्य सुनकर हमारी बोलती बंद हो गई। लेकिन मन ही मन हमने एक शेर कहा, "जो होनी थी वो बात हो ली कहारों, चलो ले चलो इनकी डोली कहारों।" 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 लाखों की खदान, पर गरीब इंदौर/भोपाल। जिनके पास दो वक्त की रोटी का भरोसा नहीं है, वह लाखों की खदान के मालिक हैं। लाखों रूपए का खनिज उनकी खदान से निकलकर बाजार में बिक रहा है, लेकिन उनके आशियाने अब भी को मकान ही हैं। क्या यह संभव है कि लाखों की खदानों के मालिक की हालत ऎसी हो, लेकिन अपने प्रदेश में है। पन्ना जिले के दो मजदूर परिवार कागजों में खदानों के मालिक हैं, लेकिन खदानें दीगर लोगों के पास हैं और वे बिचौलिया बनकर खदान से निकले खनिज को कृषि राज्य मंत्री बृजेद्र प्रताप सिंह के परिजनों को बेच रहे है। देश के दूसरे हिस्सों की तरह अपने प्रदेश में भी जनजातीय वर्ग, दलितो, पिछडों और गरीबो को भूखंड व खदानों के पटटे सिर्फ इसलिए दिए जाते है ताकि उनकी रेाजी-रेाटी का इंतजाम होने के साथ जीवन स्तर में कुछ सुधार आ सके, मगर सरकारेां की मंशा पूरी नहीं हो पा रही है। इसका उदाहरण है लखुआ अहिरवार व दयाराम। गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले लखुआ व दयाराम के कोटमी बंडोरा में खदान के पटटे हैं, यह पटटे 10-10 वर्ष के लिए दिए गए है, मगर वे सिर्फ कागजी। ऎसा इसलिए क्योंकि इन दोनों की ही खदानों का संचालन कोई और कर रहा है। दयाराम की खदान को नत्थू सिंह व लुखआ की खदान का संचालन जितेंद्र सिंह कर रहा है। इन दोनों ने सादे कागज पर अनुबंध कर दयाराम व लखुआ से खदाने आठ हजार व नौ हजार रूपए वार्षिक पर अपने कब्जे में ले रखी है। अवैध खनन के दाग मंत्री के दामन पर लखुआ और दयाराम की खदानों से निकलने वाले खनिज को नत्थू सिंह व जितेंद्र सिंह राधिका टेडर्स को बेचते है। यह राधिका टेडर्स राज्य के कृषि राज्यमंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह के छोटे भाई लोकेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी अंजू सिंह की है। नत्थू व जितेंद्र की अधिकृत फर्म नहीं है और न ही उसका पंजीयन है, फिर भी वह धडल्ले से गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले दयाराम व लखुआ की खदानों का खनिज बेचे जा रहे है। राधिका टैडर्स खरीदे गए खनिज को राज्य के बाहर भेजता है। जिम्मेदारों ने माना हो रही गड़बड़ी खदान की लीज किसी भी स्थिति में हस्तांतरित नहीं की जा सकती है, अगर कोई खदान चलाने की स्थिति में नहीं है तो उसे खदान सरकार को ही वापस करना होगी। किसी दूसरे को देना वैधानिक नही है। शैलेंद्र सिंह, खनिज सचिव भाई की पत्नी की कंपनी कृषि राज्यमंत्री बृजेद्र प्रताप सिंह से जब इस बारे में बातचीत की गई तो उन्होंने माना कि राधिका टेडर्स उनके भाई की पत्नी के नाम पर है और खनिज का करोबार किया जा रहा है। साथ ही वे बताते है कि राधिका टेडर्स खनिज की खरीदी नत्थू सिंह व जितेंद्र से करते है, इन दोनों की फर्म पंजीकृत नहीं है, लिहाजा ऎसी स्थिति में राधिका टेडर्स द्वारा दोनों से खरीदे गए खनिज पर एक प्रतिषत अतिरिक्त विRयकर का भुगतान किया जाता है। सिंह के मुताबिक ऎसा प्रावधान है कि गैर पंजीकृत संस्था से माल खरीदने पर एक प्रतिषत अतिरिक्त विRयकर जमा किया जाना चाहिए। इस नियम का पालन किया जा रहा है। सिंह स्वीकारते है कि राधिका टेडर्स सीधे तौर पर दयाराम व लखुआ से खनिज की खरीदी नहीं करता। उनके पास इस बात का कोई जवाब नही है कि राधिका टेडर्स के दस्तावेजों में विRेता के तौर पर नत्थू व जितेंद्र का नाम दर्ज न होकर दयाराम व लखुआ का ही दर्ज है। इतना ही नहीं खरीदे गए माल का भुगतान किस रूप में अर्थात नगद या चैके द्वारा होता है, इसका भी वे खुलासा नहीं कर पाए। |
आधा पानी बर्बाद हो रहा है शहरों में
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