यु वाओं द्वारा आत्महत्या, इन दिनों टीवी चैनलों की "ब्रेकिंग न्यूका" और समाचार-पत्रों की "सुर्खियां" हैं। एक सर्वेक्षण द्वारा यह बात सामने आई है कि अपना लक्ष्य पूर्ण नहीं होने के कारण "मादक सपनों में डूबी" किशोर पीढ़ी अपराधग्रस्त और "कैरियर कान्शस" युवा पीढ़ी अवसादग्रस्त हो जाती है।
अपराधग्रस्त हत्या की ओर तथा अवसादग्रस्त आत्महत्या की तरफ बढ़ते हैं। कभी-कभी तो अपराधग्रस्त और अवसादग्रस्त दोनों ही आत्महत्या को विकल्प बनाते हैं। विशेषकर युवा पीढ़ी ने तो, ऎसा लगता है कि आजकल अवसाद और आत्महत्या से ही हाथ मिला लिया है।
प्रश्न उठता है कि किन कारणों से युवा आत्महत्या कर रहे हैं? क्या है युवाओं को आत्महत्या से रोकने का उपाय? जहां तक पहले प्रश्न का मामला है तो उसका उत्तर यह है कि युवाओं में आत्महत्या के प्रचलन का पहला कारण है परीक्षाओं/ विशेषकर प्रतियोगिता प्ररीक्षाओं में असफलता।
वर्तमान युवा पीढ़ी दरअसल कैरियर को लेकर बहुत "कान्शस" (सचेत) है, बल्कि यह कहना उचित होगा अब तो "सेंसिटिव" (संवेदी) हो गई है। "कैरियर कान्शस" से भी खतरा तो है लेकिन "कैरियर सेंसिटिव" से कम। बस यही वह बिंदु है अर्थात युवा पीढ़ी का अपने कैरियर को लेकर "सचेत" होने की बजाय "संवेदी" होना, जिसकी वजह से असफलता मिलने पर वह "ऊब" जाती है और अवसाद में "डूब" जाती है। यह अवसाद कभी-कभी इतना बढ़ जाता है कि युवक/युवती आत्महत्या कर लेते हैं। इन दिनों प्रतियोगिता परीक्षाओं में असफल रहने से उपजे अवसाद के कारण आत्महत्या का ग्राफ बढ़ रहा है।
एक वाक्य में यह कि प्रतियोगिता परीक्षा में सफल रहने पर युवक/युवती का "इम्प्रेशन" बढ़ता है जबकि असफल रहने पर "डिप्रेशन"। लगातार "डिप्रेशन" आत्महत्या का कारक है। दूसरा कारण है "प्रेम प्रकरण" में असफलता। यह देखा गया है कि किशोरावस्था से ही "विपरीत लिंगी आकर्षण" पैदा होता है जो युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही "प्रेम" में परिवर्तित हो जाता है। कॉलेज के दौर में युवक-युवती "सेमेस्टर परीक्षा" की तैयारी के बजाय "प्रेम-परीक्षा" की तैयारी में ज्यादा व्यस्त रहते हैं। इसका परिणाम असफलता के रूप में सामने आता है, तो युवती तथा युवक आत्महत्या को "आसरा" बनाते हैं।
इन दिनों समाचार-पत्रों में ये शीर्षक बहुत पढ़ने को मिल रहे हैं, जैसे- प्रेम में निराश युवक ने आत्महत्या की, युवती ने प्रेम में असफल रहने पर पंखे से लटककर मौत को गले लगाया, युवा प्रेमी जोड़े ने साथ-साथ जहर खाया। ये बताते हैं कि प्रेम प्रकरण में कामयाबी नहीं मिलना (इसके दो पक्ष हैं, एक तो युवक द्वारा युवती को नकार देना या युवती द्वारा युवक को नकार देना तथा दूसरा परिवार द्वारा विवाह की अनुमति नहीं देना) भी युवक-युवती को आत्महत्या की ओर धकेलता है। तीसरा कारण है टीवी चैनलों द्वारा हिंसा और अश्लीलता परोसना। अवसाद को छोड़ दें तो "रियल्टी शो" दरअसल "क्रुएलटी शो" हो गए हैं। कई चैनलों द्वारा तो हिंसा, अश्लीलता और नकारात्मकता इस तरह परोसी जा रही है कि बच्चे, हिंसक, किशोर, अपराधी और युवा आत्मघाती हो रहे हैं। सवाल यह है कि युवाओं को आत्महत्या से रोकने के लिए क्या उपाय हों? कई उपाय हैं।
पहला तो यह कि प्राइमरी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक "जीवन जीने की कला" या "सकारात्मक जीवन-दर्शन" विषय पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। दूसरा, यह कि परीक्षाओं/ प्रतियोगिता परीक्षाओं के परिणामों में "पारदर्शिता" लाई जाए। तीसरा, यह कि प्रेम करने वाले समझें कि प्रेमी/ प्रेमिका के प्रेम से बढ़कर माता-पिता का प्रेम होता है। चौथा, यह कि टीवी चैनलों के नकारात्मक कार्यक्रमों को रोका जाए। वास्तव में युवाओं को यह समझना होगा कि सकारात्मकता से ही दूर होगा व्यवधान, आत्महत्या नहीं है समाधान!
HTML clipboard |
No comments:
Post a Comment