जिन्दगी से लंबी पीड़ा की कहानी सूरतगढ़। चार बच्चों को छोड़ पति चल बसा। न सिर छिपाने के लिए स्थाई छत और न ही पेट भरने के लिए घर में दाने थे। उम्मीद थी कि फार्म में नौकरी लगकर बच्चों को संभाल लूंगी लेकिन फार्म प्रशासन ने भी सुध नहीं ली। यह पीड़ा है मृतक सादूराम की पत्नी शकुंतला देवी की, जो अनुकम्पा नियुक्ति की बाट जोह रही है।
सादूराम फार्म मे दैनिक वेतन भोगी के रूप मे कार्यरत था। उसे न्यूनतम मजदूरी मिलती थी। उसने कर्ज लेकर आठ बच्चों में से चार पुत्रियों की शादी कर दी। 2008 में लम्बी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। ऎसे में दो पुत्रों व दो पुत्रियों के भरण-पोष्ाण तथा कर्ज उतारने की जिम्मेदारी शकुंतला देवी पर आ गई। उसने लोगों के घर बर्तन साफ कर बच्चों का पेट भरने का जतन किया लेकिन पार नहीं पड़ी। अंतत: पन्द्रह वर्षीय पुत्र किसनकुमार ने परिवार की जिम्मेदारी उठा ली और फार्म मे ठेकेदार के अधीन न्यूनतम मजदूरी पर लग गया। दो वर्ष तक न्यूनतम मजदूरी पर काम करने के बाद वह अन्य स्थान पर मजदूरी करने लगा। लगातार मजदूरी नहीं मिलने से परिवार का पोषण मुश्किल हो गया।
बच्चों का क्या करूं - चार बच्चों की जिम्मेदारी का कैसे निर्वहन करूं। बेटियां शादी योग्य हो गई, लेकिन फार्म में नौकरी नहीं मिलने के कारण शादी करना मुश्किल हो गया है। बच्चे पढ़ नहीं पाए। इस कारण अच्छा कार्य नहीं मिल पाएगा। फार्म प्रशासन उदारता दिखाए तो बच्चों का भविष्य संवर जाए।
कुपोषण के हालात - शकुंतला देवी के साथ रहने वाली दोनों पुत्री कुपोषण का शिकार हो रही हैं। घर मे भी रूखी-सूखी खाकर पेट भरा। शकुंतला देवी के अनुसार दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कैसे किया, यह वही जानती है।
भूखे मर रहे हैं लोग - फार्म मे मृतक आश्रित की नौकरी नहीं मिलने से कई परिवार भूखों मर रहे हैं। फार्म प्रबंधन को सहानुभूति का रवैया अपनाकर इन्हें तुरन्त नियुक्ति देनी चाहिए।
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